Language: Hindi
Year: 2022
ज्ञानम् कनिन्द नलंकोण्डु, नाडोरुम् नैपव वानम् कोडुष्पदु माधवन्, वल्विनैयेन् मनतिल् ईनम् कडिन्द इरामानुजन् तत्रै ये दिन अत् तानम् कोडुप्पदु, तन्तह वेतुम् शरण कोडुत्ते ॥६६॥
माधवस्तावत् ज्ञानविपाकभूतनिरन्तरध्यानात्मकभक्तिप्रकर्षभाजामेव मुक्तप्रदः प्रतीतः; महापापिनो मम हृदि कलुषमपोढवान् भगवान् रामानुजस्तु केवलं स्वकृपयैव मुक्तिमनुगृहह्णति ।।
साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान भी भक्तिरूप से परिणत ज्ञान से नित्य अपनी उपासना करने वालों को ही मोक्ष देते हैं। मुझ महापापी के हृद्गत समस्त कालुष्य मिटानेवाले श्री रामानुज स्वामीजी तो अपने आश्रितों को स्वयं अपनी कृपा रूप साधन देकर उस मोक्ष को प्रदान करते हैं। (विवरण- मोक्षप्रदान भगवान का प्रसिद्ध व मुख्य काम है। परंतु उनसे मोक्ष लेना बहुत कठीन हैं; क्योंकि अपने पास किसी साधन के विना खाली हाथ रहनेवालों को वे मोक्ष नहीं देंगे। वह साधन भी बहुत दुर्लभ है। तथाहि जिसे पहले ज्ञान उत्पन्न हो, और बाद में वह धीरे-धीरे बढ़कर परभक्ति परज्ञान इत्यादि परमभक्ति तक की अवस्थाएँ प्राप्त करें, और उसके फलतया निरंतर भजन भी सिद्ध हो, ऐसे भाग्यवान ही भगवान के श्रीहस्त से मोक्ष पा सकेगा। श्री रामानुजस्वामीजी भी मोक्षप्रदान करते हैं;
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